गीता और जीवन जीने (Life Style)की राह

Gita teaches Karma (Action), Dharma (Righteous duty), Yoga (Union) & Moksha (liberation)

आज कल की भागती दौड़ती ज़िन्दगी (Life Style) में सही और गलत का चुनाव करना मुश्किल होता है। वो चाहें ऑफिस पोलिस्टिक्स हो , बिज़नेस प्रतिस्पर्धा हो या परिवार की समस्या।  हमें कोई ऐसा चाहिए जो राह  दिखायें ।

आज इतना समय बीतने की बाद भी  श्रीमद्भगवदगीता का ज्ञान हमें मदद करता है की हम कैसे मन के अंदर के द्वन्द को सुलझाइए क्यूंकि इसमें इन सब बातो का जवाब  है ।

महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन अपने कर्त्तव्य से विमुख हो गए तब  श्री कृष्ण द्वारा उन्हें यह  उपदेश दिया गया।  गीता का उपदेश 18 अध्याय  में संकलित है। 

जो रोचक प्रश्न मेरे ह्रदय में आते है आपको भी परेशान करते होंगे।इन प्रशनो के उत्तर के रूप में मैं गीता के श्लोक अर्थ सहित उद्हारण   देकर बताता हूँ  ।

18 अध्याय निम्न है :

  •  अर्जुन विषादयोग (Arjuna’s despair and moral dilemma)
  •  गीता का सार (सांख्य योग)
  •  कर्मयोग (Importance of selfless action)
  •  दिव्य ज्ञान (Action through knowledge, divine purpose)
  •  कर्म सन्यास योग (Renunciation vs. Action)
  • ध्यान योग ( Meditation and mind control)
  • भगवद्ज्ञान
  • भगवान की प्राप्ति
  • परम गुप्त ज्ञान
  • श्रीभगवान का ऐश्वर्य
  • विराट रूप
  • भक्तियोग (Devotion, divine forms, surrender)
  •  प्रकृति, पुरुष तथा चेतना
  • प्रकृति के तीन गुण
  •  पुरुषोत्तमयोग
  •  दैवी तथा आसुरी स्वभाव
  •  श्रद्धा के विभाग
  • संन्यास की सिद्धि

प्रश्न 1  जीवन में कर्म (Action )करें या न करें ।

उत्तर:

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि ते प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।

आपके लिए जो निर्धारित कार्य है, उसे मन-बुद्धि लगाकर मनोयोगपूर्वक करो। क्योंकि कर्म करने की अपेक्षा कर्म करना ही सबसे बढ़िया मार्ग है। और अगर कर्म नहीं करोगे तो जीवनयात्रा-शरीर का निर्वाह करना भी असंभव हो जाएगा।

प्रश्न 2 कर्म (Action )करते हुए फल (Result) की चिंता करे या न करे।

उत्तर:

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

श्री कृष्ण समझाते है की केवल कर्म करना ही हमारे हाथ में है। कर्म द्वारा मिलने वाले फल हमारे हाथ में नहीं है। इसलिए निस्वार्थ हो कर सिर्फ अच्छे कर्म करने पर ही ध्यान देना चाहिए।

प्रश्न 3 क्रोध (Anger) करना क्यों बुरा है।

उत्तर:

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

क्रोध से मोह उत्पन होता है और मोह से स्मरण शक्ति विभ्रमित हो जाती है जिससे बुद्धि नष्ट हो जाती है, स्वयं उस मनुष्य का भी नाश हो जाता है|

प्रश्न 4 ऊँचें पद पर बैठे लोगो का आचरण कैसा होना चाहियें।

उत्तर:

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:
यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

श्रेष्ट व्यक्ति जो आचरण करते है सामान्य व्यक्ति उसी का अनुसरण करते है।  वह अपने  अनुसरणीय कार्यो से जो आदर्श प्रस्तुत करते है, सम्पूर्ण विश्व उसका अनुसरण  करता है। 

प्रश्न 5   ईश्वर को पाने के मार्ग कौन से है।

उत्तर:

संन्यास: कर्मयोगश्च नि:श्रेयसकरावुभौ | तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते |

श्री कृष्ण कहते है की मुक्ति के लिए तो कर्म का परित्याग तथा भक्तिमय कर्मयोग दोनों उत्तम है लेकिन इन दोनों में कर्मा के परित्याग से भक्ति युक्त कर्म   श्रेष्ट  है। 

प्रश्न 6 क्या शरीर की आत्मा (Eternal soul distinct from the body and mind) नष्ट होती है।

उत्तर:

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।

 चैनं क्लेदयन्त्यापो शोषयति मारुतः।।2.23।।

 गीता  के अनुसार आत्मा को कोई शस्त्र काट नहीं सकता, नाही किसी प्रकार की आग उसे जला सकती है। कोई पानी, हवा या आपत्ति भी आत्मा को मार नहीं सकती।

प्रश्न 7 क्या पुनर्जन्म (Reincarnation)है ।

उत्तर:

बहूनि में व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप॥

श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, हमारा केवल यही एक जन्म नहीं है बल्कि पहले भी हमारे हजारों जन्म हो चुके हैं, तुम्हारे भी और मेरे भी परन्तु मुझे सभी जन्मों का ज्ञान है, तुम्हें नहीं है|

प्रश्न 8  शरीर ,मन, इन्द्रिय, बुद्धि और आत्मा में से क्या  श्रेष्ट है। 

उत्तर:

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः । मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥

इन्द्रियों को स्थूल शरीर से ऊपर  श्रेष्ठ, बलवान और सूक्ष्म कहते हैं। इन इन्द्रियों से

ऊपर  मन है, मन से भीऊपर बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यन्त ऊपर  है वह आत्मा  है।

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